भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SCI) ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिकता को 4:1 के बहुमत से बरकरार रखा। इसके अनुसार, धारा 6A संविधान के अनुच्छेद 6 और 7 का उल्लंघन नहीं करती है, जो 1950 में संविधान के प्रारंभ में स्थापित नागरिकता अधिकारों से संबंधित हैं।
- इसके बजाय, धारा 6A पूर्ववर्ती पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश), विशेष रूप से वे जो 1 जनवरी 1966 और 24 मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश किए थे से आए प्रवासियों को संबोधित करती है।
- बहुमत वाले न्यायाधीशों में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) धनंजय यशवंत (DY) चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत, M.M. सुंदरेश और मनोज मिश्रा ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति जमशेद बुर्जोर (JB) पारदीवाला ने फैसले में असहमति जताई।
नोट:
i.अनुच्छेद 6 में कहा गया है कि पाकिस्तान से भारत में प्रवास करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
ii.अनुच्छेद 7 में पाकिस्तान में प्रवास करने वाले कुछ लोगों के नागरिकता के अधिकार बताए गए हैं।
कट-ऑफ तिथि 24 मार्च, 1971 क्यों चुनी गई?
24 मार्च, 1971 की कट-ऑफ तिथि महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पूर्वी पाकिस्तान में सैन्य अभियानों की शुरुआत का प्रतीक है, जिसके कारण असम में बड़े पैमाने पर प्रवास हुआ। यह तिथि बांग्लादेश मुक्ति युद्ध से निकटता से जुड़ी हुई है।
मुख्य बिंदु:
i.न्यायालय ने माना कि असम की एक विशेष जनसांख्यिकीय और राजनीतिक स्थिति है। बड़ी संख्या में प्रवासियों ने असम को अन्य राज्यों की तुलना में अधिक प्रभावित किया, यही कारण है कि इसे धारा 6A जैसे विशिष्ट कानूनों की आवश्यकता है।
ii.न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जनसांख्यिकी में परिवर्तन अनुच्छेद 29(1) के तहत संरक्षित सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है। इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारतीय समाज में विभिन्न संस्कृतियाँ शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में रह सकती हैं।
iii.फैसले ने पुष्टि की कि धारा 6A भारत में एकता और सामाजिक न्याय के व्यापक लक्ष्यों का समर्थन करती है। इसने उन दावों को खारिज कर दिया कि कानून अवैध अप्रवास या बाहरी खतरों को बढ़ावा देता है।
नागरिकता अधिनियम की धारा 6A क्या है?
धारा 6A को असम समझौते के बाद 1985 में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम/CAA के हिस्से के रूप में पेश किया गया था, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश से अवैध आव्रजन पर तनाव को हल करना था। इसके मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं:
i.यह 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करता है। जो लोग 1 जनवरी, 1966 और 24 मार्च, 1971 के बीच असम आए हैं, वे असम में दस साल के निवास के बाद नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
ii.25 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को अवैध प्रवासी के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और कानूनी प्रक्रियाओं के तहत उन्हें निर्वासित किया जा सकता है।
iii. धारा 6A के तहत मान्यता प्राप्त नागरिकों को भारतीय नागरिकों के समान सभी अधिकार और दायित्व प्राप्त होते हैं, लेकिन यदि वे निर्धारित समय सीमा के दौरान प्रवेश करते हैं, तो उन्हें एक निश्चित अवधि के लिए मतदान पर प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है।
धारा 6A को क्यों चुनौती दी गई?
गैर-सरकारी संगठन (NGO) असम पब्लिक वर्क्स (APW) और असम संमिलिता महासंघ/ASM (मुख्य याचिकाकर्ता) समेत याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि असम में नागरिकता के लिए अलग-अलग कट-ऑफ तारीख भेदभावपूर्ण है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, जो समानता की गारंटी देता है।
उनके द्वारा उठाई गई प्रमुख चिंताएं:
i.उन्होंने चिंता जताई कि यह प्रावधान अनुच्छेद 6 और 7 का खंडन करता है, जो विभाजन से संबंधित प्रवास के लिए नागरिकता को नियंत्रित करते हैं।
- अनुच्छेद 6 उन लोगों को नागरिकता प्रदान करता है जो 19 जुलाई, 1948 से पहले पाकिस्तान से पलायन कर गए थे, जबकि अनुच्छेद 7 उन लोगों को नागरिकता देने से इनकार करता है जो 1 मार्च, 1947 के बाद पाकिस्तान चले गए।
ii.याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि धारा 6A के कारण असम के जनसांख्यिकीय संतुलन में उल्लेखनीय बदलाव आया है, जिससे अनुच्छेद 29 के तहत संरक्षित क्षेत्र की स्वदेशी आबादी के सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों को खतरा पैदा हो गया है।
iii.उन्होंने तर्क दिया कि यह स्थिति अनुच्छेद 355 के तहत राज्य की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार पर दायित्व डालती है।
लेकिन SCI ने उपर्युक्त फैसले के साथ धारा 6A की संवैधानिकता को बरकरार रखा।
धारा 6B का जोड़:
धारा 6A के अलावा, धारा 6B को 2019 में CAA द्वारा जोड़ा गया था। यह धारा नागरिकता अधिनियम के भीतर एक और विशिष्ट प्रावधान स्थापित करती है। यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम बहुल देशों से हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, बौद्ध और जैन प्रवासियों के लिए नागरिकता पात्रता की कट-ऑफ तिथि 31 दिसंबर, 2014 निर्धारित करती है।
- यह विशेष रूप से उपर्युक्त देशों के गैर-मुस्लिम प्रवासियों पर लागू होता है।
हाल ही के संबंधित समाचार:
i.महिला और बाल विकास मंत्रालय (MWCD), भारत सरकार (GoI) ने 50 से अधिक वर्षों के बाद राष्ट्रीय लोक सहयोग और बाल विकास संस्थान (NIPCCD) की कार्यकारी परिषद (EC) और आम सभा (GB) का पुनर्गठन किया है।
ii.मुस्लिम विमेंस राइट्स डे जिसे ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ के रूप में भी जाना जाता है, भारत भर में प्रतिवर्ष 1 अगस्त को मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अधिनियमन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जो भारत में ट्रिपल तलाक की प्रथा को प्रतिबंधित करता है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SCI) के बारे में:
SCI की स्थापना 26 जनवरी, 1950 को हुई थी, यह भारतीय संविधान के तहत सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण है, जैसा कि अनुच्छेद 124 द्वारा अनिवार्य है।
महासचिव- अतुल मधुकर कुरहेकर
मुख्यालय- नई दिल्ली, दिल्ली